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द्वितीय बात यह है कि यदि कोई भक्त सच्ची श्रद्धा एंव निष्ठा के साथ अपनी किसी कामना की पूर्ति के लिए ४१ दिन तक मंदिर में पूजा अर्चना करता है तो उसकी कामना अवश्य सफल होती है । अनेक भक्त इस विषय में अपनी समस्या तथा उसकी सफलता का किस्सा सुनाते हैं ।
इन्ही उदाहरणों से प्रभावित होकर वर्तमान महंत श्री त्रिवेणीदास जी महाराज ने यहां साधना का लाभ उठाया है । सन १९७० के लगभग यह मंदिर एक वृद्ध साधु की देख-रेख में था । मंदिर पूर्णतया उपेक्षित था । मंदिर का परिसर गड्डों से युक्त था । इसकी दशा को सुदृढ़ करने हेतु प्रबुद्ध भक्तजनो ने श्री त्रिवेणीदास जी महाराज से मंदिर की देख - रेख, पूजा - अर्चना का दायित्व संभालने की प्रार्थना की तथा उन्होंने स्वदीक्षा गुरु पूज्यपाद तपोमूर्ति श्रीमहंत हंसदास जी महाराज, ( पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन, हरिद्धार ) से आज्ञा ग्रहण कर यहां का दायित्व सम्भाला, उस समय यहां पुजारी के रहने के लिए कोई प्रबंध नहीं था, मंदिर की परिक्रमा, चारदीवारी नहीं थी । सन १९७२ से ही जनसामान्य के सहयोग से सर्वप्रथम मंदिर के गर्भगृह का जीर्णोद्धार, मंदिर परिक्रमा का निर्माण, फर्श तथा बाहरी चहारदीवारी, गंगाजी की ओर से दीवार को व्यवस्थित रूप देना तथा सन १९८७-८८ से कमरों का निर्माण भूतल पर ४-५ कमरे, पाठशाला, गौशाला, शौचालय, परिसर तथा मंदिर परिक्रमा, भूगर्भ गृह में सुन्दर मार्बल, प्रथम तल पर ४ दो रूम सैट तथा ५ एक रूम सैटों, द्वितीय तल विशाल सभागार मंदिर परिसर में यज्ञशाला, शिवशक्ति परिवार, भगवान लक्ष्मीनारायण मंदिर की स्थापना की गयी थी ।
सन १९९८ में गुरु महाराज के आदेश की पूर्ति हेतु मंदिर ट्रस्ट की स्थापना तथा रजिस्ट्रेशन कराया गया। वर्तमान समय में वैदिक सनातन धर्म के प्रचारार्थ तथा वैदिक संस्कारादि, पूजा अर्चना, यज्ञानुष्ठान आदि के सुव्यवस्थित स्वरूप की रक्षा एंव शिक्षा हेतु श्री हंस कर्मकाण्ड प्रशिक्षण केंद्र का संचालन तीथयात्रियों के निशुल्क भजन, आवास, भोजन व्यवस्था तथा धार्मिक यज्ञानुष्ठान के द्वारा सनातन धर्म का प्रचार कर निर्धन विद्याथियों की निशुल्क शिक्षा, आवास, भोजन, चिकित्सा आदि की सेवा प्रदान करना, साथ ही धर्म प्रचार के माध्यम से निःसहाय विकलांग आदि को अन्नक्षेत्र के माध्यम से सेवा की जाती है ।
भविष्य में ट्रस्ट निःशुल्क औषधालय, पुस्तकालय, वाचनालय, विध्यालय, गौशाला आदि का संचालन संस्था का मुख्य उद्द्देश्य है । संस्था के मुख्य पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तथा श्रावण शुक्ल चतुर्दशी को वार्षिक महोत्सव तथा भगवान शिव की शोभायात्रा (महाशिवरात्रि) का आयोजन किया जाता है । सभी सनातन धर्म प्रेमी प्रबुद्ध आस्तिक भक्तजन मंदिर के उत्थान में सहयोग प्रदान करते हैं । सदाशिव भूतभावन भगवान श्री तिलभाण्डेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से ही भूत - प्रेत, पितरों की मुक्ति, पुत्र - विवाह, धन की प्राप्ति और समस्त व्याधियों से मुक्ति एंव शत्रुओं पर विजय मिल जाती है, यह प्रत्यक्ष देखा गया है तथा असाध्य से भी असाध्य रोगों पर भगवान की अर्चना करने से निश्चय ही शक्ति प्राप्त होती है । सेवा से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है , जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण है श्री तिलभाण्डेश्वर महादेव मन्दिर ।
अन्त में भगवान् भूतभावना से प्रार्थना है -

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भागभवेत्॥

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शिव - स्तुति :
वन्दे देवमुमापंति सुरगुरं वन्दे जगत्कारणं वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् । वन्दे सूर्यशशाङ्क वह्रिनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियं । वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङकरम् ॥ श्री तिल भाण्डे श्र्वराय नमः

द्धादश ज्योतिर्लिगङा:
सौराष्टे सोमनाथं च, श्री शैले मल्लिकार्जुनम । उज्जयन्यां महाकालं, ओमकारं ममलेश्र्वरम् । प्रहल्यां वैद्यनाथं च , डाकिन्यां भीमशंकरम् । सेतुवन्दे तु रामेशम, नागेशं दारुकावने । वाराणस्यां तु विश्र्वेसं, त्रयम्बकं गौतमी तटे । हिमालये तु केदारम्, घुसमेसं शिवालये । एतानि ज्योतिर्लिगङा, सायं प्रातः पठेन्नरः सप्त जन्म कृतं पापम, स्मरणेन विनश्यति ॥

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