दक्ष प्रजापति क्षेत्र कनखल के मध्य भाग में पतित पावनी देवनदी गडा तट पर स्थित प्राचीन सिद्धपीठ श्रीतिलभाण्डेश्वर महादेव मंदिर माहात्म्य
रजोजुषे जन्मनि सत्ववृतत्ये स्थितौ प्रजानां प्रलये तमः स्मृशेः ।
अजाय सर्गस्थितिनाश हेतवे त्रयीमथाय त्रिगुणात्मने नमः ॥
भगवान भूतभावन महामृत्युंजय सदाशिव को श्रद्धापूर्वक नमन कर सर्वशास्त्रार्थ तत्वज्ञ गुरुवृन्द एवं सर्वगुणभूषित संत महात्माओं के चरणकमलों में श्रद्धापुष्प अर्पित, मैं अल्पज्ञ भारत की परम पावन तीर्थनगरी मायापुरी अंतर्गत प्रजापति दक्ष की यज्ञस्थली कनखलनगरी के मध्यभाग में शंकर मौलिविलासिनी सदानीरा पतितपावनी भगवती भागीरथी के पश्चिम तट पर स्थित अतिप्राचीन सतयुगीन सिद्धपीठ तिलभांडेश्वर महादेव नामक मंदिर के माहात्म्य को समस्त सामान्य जनमानस में पूर्व परम्परा के आधार पर लिखने का प्रयास कर रहा हूँ । इस संबंध में पौराणिक सन्दर्भों का अनुसरण स्वाभाविक है । सतयुग के प्रथम चरण में भगवान नारायण के नाभिकमल से सर्वविधसृष्टिकर्ता ब्रम्हाजी की उत्पति हुई । ब्रम्हाजी ने मानस संकल्प से सनकादि आदि ऋषि तथा मरीचि, अत्रि, अडिश, पुलह, पुलस्त्य, क्रतु, भृगु, वसिष्ठ, दक्ष और नारद इन दश ऋषियों को जन्म दिया ।
उत्स्डात्रारदो जज्ञेदक्षोडंगुष्ठातस्वयम्भूतः । (श्रीमद् भागवत तृतीयस्कन्ध १२/२३)
अर्थात ब्रम्हाजी के उत्संड (गोद) से नारद तथा अडुंष्ठ से दक्ष की उत्पत्ति हुई । दक्ष की ६० पुत्रियां हुई उनमें १३ पुत्रियां /अदिति दिति आदि का विवाह मरीचि पुत्र कश्यप से हुआ । देवता, दैत्य, गन्धर्व, आदि सभी कश्यप की संतान है । ब्रहमाजी ने ज्येष्ठ पुत्र दक्ष को प्रजापति नियुक्ति किया, उन्हें प्रजापति पद पा कर अधिक अभिमान हो गया । दक्ष की सती नामक कन्या का विवाह कैलाशपति भगवान शिव से हुआ ।
एक समय प्रजापतियों के यज्ञ में अनेक ऋषि, मुनि, देवता, अग्रि आदि अपने अनुयायियों के साथ एकत्र हुए । उसी समय परम तेजस्वी दक्ष ने सभा में प्रवेश किया । तब सभी सभासदों ने खड़े हो कर दक्ष का सम्मान स्वागत किया किन्तु भगवान शिव को पहले से ही ब्रह्माजी के समीप बैठा देखकर और उनसे अपना सम्मान न पाकर परम क्रुद्ध होकर दक्ष ने उन्हें शाप दे दिया कि देवताओं में अधम यह भव (शिव) देवयज्ञ में देवताओं के साथ यज्ञ का भाग न प्राप्त करे ।
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शिव - स्तुति :
वन्दे देवमुमापंति सुरगुरं वन्दे जगत्कारणं
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् ।
वन्दे सूर्यशशाङ्क वह्रिनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियं ।
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङकरम् ॥
श्री तिल भाण्डे श्र्वराय नमः
द्धादश ज्योतिर्लिगङा:
सौराष्टे सोमनाथं च, श्री शैले मल्लिकार्जुनम ।
उज्जयन्यां महाकालं, ओमकारं ममलेश्र्वरम् ।
प्रहल्यां वैद्यनाथं च , डाकिन्यां भीमशंकरम् ।
सेतुवन्दे तु रामेशम, नागेशं दारुकावने ।
वाराणस्यां तु विश्र्वेसं, त्रयम्बकं गौतमी तटे ।
हिमालये तु केदारम्, घुसमेसं शिवालये ।
एतानि ज्योतिर्लिगङा, सायं प्रातः पठेन्नरः
सप्त जन्म कृतं पापम, स्मरणेन विनश्यति ॥