अयं तु देवयजन इन्द्रासिर्मभर्वः, सह भागं न लभतां देवैन्द्रेर्गणाधमः। (भागवत चतुर्थ स्कंध, २/१८)
तत्पश्चात दक्ष द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया, उसमें सभी देवगन, ऋषि-मुनि,पितर आदि को आमंत्रित किया । अभिमानवश अपनी पुत्री सती तथा जामाता शिव को जानकार निमंत्रण नहीं भेजा । दक्ष यज्ञ में आकाश मार्ग से देव, ऋषि, मुनि, आदि को जाता देखकर सती ने भगवान शिव से प्रश्न किया कि ये देवगन, किस आयोजन में सम्मिलित होने के लिए जा रहे हैं । भगवान शिव द्वारा प्रजापति दक्ष द्वारा यज्ञ के आयोजन का समाचार जान कर सती यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए आग्रह करने लगी तथा शिव के लाख मना करने पर भी नहीं मानने पर भगवान शिव ने सती की रक्षा क लिए कुछ गणों को उनके साथ भेज दिया । दक्षपुत्री कनखल के यज्ञस्थल पर पहुंचकर यज्ञ में शिव का आसन (देवगण के साथ) न देखकर सती को महान खेद हुआ तथा दक्ष के महल में माता के अतिरिक्त किसी बहिन ने भी उसका योगश्रेम नहीं पूछा, इस पर सती का क्रोधित होना स्वाभाविक ही था तथा उन्होंने अपने पिता को भला - बुरा कहकर स्वयं योगाग्नि से शरीर त्याग कर दिया । इस पर शिवजी के गणों ने यज्ञ का विध्वंस कार्य आरम्भ कर दिया किन्तु तेजस्वी भृगु आदि ऋषियों ने मन्त्रों के प्रभाव से गणों को परास्त कर भगा दिया तथा गणों ने भगवान शिव को यज्ञस्थल पर सती के देह त्याग तथा ऋषियों द्वारा गणों के पराजय का समाचार दिया । यह सब वृतांत सर्वविदित होने के कारण विस्तृत कथन में व्यर्थ समझता हूँ ।
ततपश्चात भगवान शिव द्वारा अपने अंश वीरभद्र को भेजकर दक्षयज्ञ को विध्वंस, दक्ष का सिर काटकर यज्ञकुण्ड में फेंक दिया । भृगु की दाड़ी मूंछ नोंच डाली, पूषा के दांत तोड़ दिये, भगदेवता के नेत्र निकाल लिए तथा यज्ञ को ध्वंस कर वीरभद्र कैलाश लौट गये और सब समाचार से भगवान शिव को अवगत कराया ।
दूसरी ओर दक्षप्रजापति के यज्ञ विध्वंस, भगवान शिव व सती के अपमान, वीरभद्र द्वारा दक्ष का वध, भृगु, पूषा, भग आदि का अंग - भंग, सती का देहत्याग आदि का समाचार समस्त लोकों में आग की भांति फैल गया, सभी देवगण में भय व्याप्त हो गया । यज्ञ के विध्वंस, यजमान तथा याज्ञीकों की हानिसूचक अमंगल से भविष्य में यज्ञादि शुभ कार्यों के प्रति अनास्था की भावना से क्षुभित होकर देवगण ब्रम्हाजी की सरण में गये । ब्रह्माजी ने देवताओं को साथ लेकर बैकुंठधाम में भगवान विष्णु के समक्ष जाकर समस्त वृतांत सुनाया । भगवान विष्णु ने सभी को शांत कर समझाया कि इस समस्या का समाधान भगवान कैलाशपति शिव को प्रसंन्न कर ही किया जा सकता है, अतः सभी को कैलाश चलना चाहिए ।
शिव - स्तुति :
वन्दे देवमुमापंति सुरगुरं वन्दे जगत्कारणं
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् ।
वन्दे सूर्यशशाङ्क वह्रिनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियं ।
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङकरम् ॥
श्री तिल भाण्डे श्र्वराय नमः
द्धादश ज्योतिर्लिगङा:
सौराष्टे सोमनाथं च, श्री शैले मल्लिकार्जुनम ।
उज्जयन्यां महाकालं, ओमकारं ममलेश्र्वरम् ।
प्रहल्यां वैद्यनाथं च , डाकिन्यां भीमशंकरम् ।
सेतुवन्दे तु रामेशम, नागेशं दारुकावने ।
वाराणस्यां तु विश्र्वेसं, त्रयम्बकं गौतमी तटे ।
हिमालये तु केदारम्, घुसमेसं शिवालये ।
एतानि ज्योतिर्लिगङा, सायं प्रातः पठेन्नरः
सप्त जन्म कृतं पापम, स्मरणेन विनश्यति ॥
© Copyright 2014 Tilbhandeshwar Mahadev Mandir Website Design Company: Unikudos Softwares